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ग़ज़ल
जहाँ में होती हैं लोगों की हाजतें क्या क्या
लिखी हैं चेहरों पे उन के इबारतें क्या क्या
नसीम अख्तर
ग़ज़ल
मताअ'-ए-हिज्र ले कर इन अँधेरों से निकल जाओ
मिरे दामन के दाग़ो रौशनी में अब तो ढल जाओ